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आज-कल सत्ता का स्वाद चखना राजनितिक पार्टियों के लिए एकमात्र लक्ष्य

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Raushanjha

Published: 2 months ago
आजकल सत्ता का स्वाद चखना राजनीतिक पार्टियों का लक्ष्य
भारत में राजनीति अब सेवा नहीं, सत्ता के स्वाद की भूख बन चुकी है।
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अभी बिहार में राजनितिक गठबंधनों के बीच काफी खीचतान देखने को मिला ,क्योकि बिहार में विधानसभा का चुनाव चल रहा है और सियासी हलचल तेज है | राजनितिक दल अपने स्वार्थ एवं अवसर के आधार पर अपने राजनितिक विचारधारा की परिभाषा गढ़ रहे है | आजकल सत्ता का स्वाद चखना और सत्ता की भूख ही राजनितिक पार्टियों का एक मात्र लक्ष्य रह गया है | यह विडंबना ही है की भाकपा माले के उभरते युवा नेता चंद्रशेखर की हत्या राजद के बाहुबली सांसद सहाबुद्दीन के इशारे पर की गयी थी आज राजद और माले साथ है |

चिराग और कुशवाहा राजग (NDA) से अलग हो गए थे

  • पिछले विधान सभा चुनाव में चिराग पासवान ने अलग चुनाव लड़ा था और जदयू को खासे नुकसान पहुचाया था .
  • उपेन्द्र कुशवाह भी राजग से अलग चुनाव लड़े थे लेकिन आज राजग के साथ है .
  • मुकेश सहनी राजग गठबंधन के साथ थे लेकिन अभी महागठबंधन के साथ है.
  • नितीश कुमार को पलटू राम की उपाधि से नवाजा जाता है .
  • 1994 में नितीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनायीं थी .
  • 2013 में जब नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमत्री उम्मीदवार घोषित किया तो नितीश ने राजग गठबंधन से किनारा किया था .
  • नितीश अप्रत्याशित रूप से कई बार गठबंधन बदल चुके है .

कांग्रेस की नीतियों और सत्ता का विरोध कर फली फूली पार्टियाँ आज कांग्रेस के साथ

  • गैर कांग्रस की विचारधार राममनोहर लोहिया ने सुदृढ़ किया था .
  • 1963 के लोकसभा उपचुनाव में गैर कांग्रेस विचारधारा को वैचारिक आधार मिली .
  • गैर कांग्रस विचारधारा के कारन ही 1977 और 1989 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को जबदस्त पटखनी मिली.
  • 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा के ताकतवर होते देख समाजवादी और वाम दल कांग्रेस से मिल गई .

गठबंधन के जोड़ -तोड़ में राजनितिक मूल्यों को ताक पर रखते है राजनितिक दल

आज पश्चिम बंगाल ,केरल,त्रिपुरा आदि राज्यों में लेफ्ट पार्टियां कांग्रेस के साथ सत्ता पर काबिज है एक समय ये कांग्रेस की धुर विरोधी थी |जिन कांग्रेस की नीति,सत्ता, विचारधारा आदि का विरोध कर के अस्तित्त्व में आई विडंबना देखिये आज इनके बिच चोला दामन का साथ है | महाराष्ट्र में १९८९ में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन हुआ और २०१९ तक चला और आज शिवसेना कांग्रेस एक साथ है |

१९६७ में पंजाब और तमिलनाडु में कांग्रेस को पछारने के लिए वाम दल जनसंघ के साथ थी | लोकतंत्र में राजनितिक दल महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | राजनितिक दल को मतदाताओं के भावनाओ का भी ध्यान रखना चाहिए | साथ ही साथ राजनितिक मूल्यों एवं आदर्श का निर्वाह भी करनी चाहिए | लोकतंत्र में चुनाव एक उत्सव है | समय और अवसर देखकर राजनीती की परिभाषा नहीं गढ़नी चाहिए |

राजनीतक दलों के लिए गठबंधन के मानक तय होने चाहिए

राजनितिक दलों के लिए आपस में गठबंधन करने के लिए एक मानक तय होनी चाहिए | अब प्रश्न उठता है की ये मानक कौन निर्धारित करेगा ? क्या चुनाव आयोग तय करेगा या कोई और एजेंसी जी नहीं ये हम और आप तय कर सकते है | हमारे पास मत देने की शक्ति है और हम जनप्रतिनिधि या राजनीतक दल से इतनी तो अपेक्षा रख ही सकते है की वो हमारे भावनाओ और मतों के सम्मान दे | कोई भी रानीतिक दल आये दिन किसी भी दल के साथ गठजोड़ कर लेते है | हम जाती , सम्प्रदाय , क्षेत्र, समुदाय आदि से ऊपर उठकर मतदान करे तभी राजनीती में उच्च मानक स्थापित हो पाएंगी |चुनाव में रेवारियाँ खूब बांटी जा रही है जनता की वास्तविक समस्या ठन्डे बस्ते में चली जाती है और झूटी घोषणा पत्रों का खूब प्रचार प्रसार किया जाता है | आरोप प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलता है एक दुसरे दलों और नेताओं पर व्यक्तिगत आक्षेप भी लगायी जाती है | सत्ता पाने के लिए साम दाम और दंड भेद का इस्तेमाल किया जाता है | राजनीति का अपराधीकरण तेजी से बढ़ा है विधानसभा से लेकर संसद तक अपराध में सलिंप्त या आरोपित उम्मीदवार चुनाव जीतकर सदन में आ जाते है |

लेख सम्पादक – नंदन झा

Author

  • नमस्कार दोस्तों मेरा नाम Raushan Jha है मै एक न्यूज़ कंटेंट राइटर और डिजिटल जर्नलिज़्म रिसर्चर हूँ । मै ब्रेकिंग न्यूज़, करंट अफेयर्स, सामाजिक मुद्दों, टेक्नोलॉजी और जनहित से जुड़े विषयों पर तथ्यात्मक और संतुलित रिपोर्टिंग करता हूँ । मेरा उद्देश्य पाठकों तक सटीक, निष्पक्ष और भरोसेमंद जानकारी पहुँचाना है, ताकि लोग सही तथ्यों के आधार पर अपनी राय बना सकें।


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